जिन्दगी का सफ़र...
जिन्दगी की गाड़ी में बैठे हम निकल पड़े अपनी मंज़िल की तलाश में। कई जानी अनजानी गलियों से गुज़रे। हर मोड़ पे अच्छे बुरे लोगों से मुलाकात हुई। किसी ने घर आने का न्योता दिया तो किसी ने राह में ही विदा ले ली। ऐसे भी बहुत लोग मिले जिन्होंने सफर में कुछ साथ दिया। दिल कहता था आख़िर कोई दोस्त मिल ही गया जिसके सहारे अब ये रूखा सफ़र थोडा दिलचस्प होगा। उससे बातें करते करते समय बीतने का पता ही नही चला। फिर अचानक एक दिन उसने कहा कि उसे ये साथ छोड़ना होगा क्यूंकि उसका लक्ष्य उसे मिल गया था। कई मित्र साथ चलने की बात करने लगे पर उन्हें क्या कहते कि हम कितने मजबूर थे। हमे भी तो अपनी मंज़िल की तलाश थी। दिल रोया, तरसा पर कुछ ना कर सका। हारकर फिर बढ़ चले उसी सूनी राह पर। यही आस थी कि ज़रूर कोई रहगुज़र होगा जो मुझे समझेगा और मेरे लिए रुक जाएगा। हर पडाव पे प्रकृति के सौंदर्य का अनुभव किया। काफी बार तो वहीँ रूक जाने का मन किया। पर ये गाड़ी किस के कहने पर रूकती है?! आगे बढ़ जाना पड़ा। पर मन हमेशा इसी उधेड़बुन में रहता है कि जाने आगे कैसा दृश्य देखने को मिलेगा! उम्मीद है किसी नुक्कड़ पे ख़ुशी छुप कर खडी होगी मेरे ही इं...